Not known Factual Statements About Shodashi

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Community feasts play a major function in these functions, exactly where devotees come jointly to share meals That always incorporate conventional dishes. This kind of meals celebrate both equally the spiritual and cultural aspects of the Competition, maximizing communal harmony.

The graphic was carved from Kasti stone, a uncommon reddish-black finely grained stone accustomed to trend sacred illustrations or photos. It was introduced from Chittagong in present working day Bangladesh.

Goddess is commonly depicted as sitting to the petals of lotus that may be stored about the horizontal physique of Lord Shiva.

कन्दर्पे शान्तदर्पे त्रिनयननयनज्योतिषा देववृन्दैः

Once the Devi (the Goddess) is worshipped in Shreecharka, it is said being the highest type of worship with the goddess. You can find 64 Charkas that Lord Shiva gave on the humans, as well as distinctive Mantras and Tantras. These got so that the individuals could give attention to attaining spiritual Advantages.

उत्तीर्णाख्याभिरुपास्य पाति शुभदे सर्वार्थ-सिद्धि-प्रदे ।

ഓം ശ്രീം ഹ്രീം ക്ലീം ഐം സൗ: ഓം ഹ്രീം ശ്രീം ക എ ഐ ല ഹ്രീം ഹ സ ക ഹ ല ഹ്രീം സ ക ല ഹ്രീം സൗ: ഐം ക്ലീം ഹ്രീം ശ്രീം 

वृत्तत्रयं च धरणी सदनत्रयं च श्री चक्रमेत दुदितं पर देवताया: ।।

श्रीचक्रवरसाम्राज्ञी श्रीमत्त्रिपुरसुन्दरी ।

देवस्नपनं उत्तरवेदी – प्राण प्रतिष्ठा विधि

देव्यास्त्वखण्डरूपायाः स्तवनं तव तद्यतः ॥१३॥

The reverence for Tripura Sundari transcends mere adoration, embodying Shodashi the collective aspirations for spiritual development plus the attainment of worldly pleasures and comforts.

तिथि — किसी भी मास की अष्टमी, पूर्णिमा और नवमी का दिवस भी इसके लिए श्रेष्ठ कहा गया है जो व्यक्ति इन दिनों में भी इस साधना को सम्पन्न नहीं कर सके, वह व्यक्ति किसी भी शुक्रवार को यह साधना सम्पन्न कर सकते है।

यह साधना करने वाला व्यक्ति स्वयं कामदेव के समान हो जाता है और वह साधारण व्यक्ति न रहकर लक्ष्मीवान्, पुत्रवान व स्त्रीप्रिय होता है। उसे वशीकरण की विशेष शक्ति प्राप्त होती है, उसके अंदर एक विशेष आत्मशक्ति का विकास होता है और उसके जीवन के पाप शान्त होते है। जिस प्रकार अग्नि में कपूर तत्काल भस्म हो जाता है, उसी प्रकार महात्रिपुर सुन्दरी की साधना करने से व्यक्ति के पापों का क्षय हो जाता है, वाणी की सिद्धि प्राप्त होती है और उसे समस्त शक्तियों के स्वामी की स्थिति प्राप्त होती है और व्यक्ति इस जीवन में ही मनुष्यत्व से देवत्व की ओर परिवर्तित होने की प्रक्रिया प्रारम्भ कर लेता है।

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